रिपोर्ट डॉ नवीन पी सिंह
Raipur chhattisgarh VISHESH : वित्त वर्ष 2025 के बजट में कृषि और संबद्ध क्षेत्र के लिए लगभग 1.52 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न आय-सहायता उपायों के जरिए भारतीय किसानों की आमदनी बढ़ाने की संभावनाओं में नई जान फूंकने के लिए व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों के दौरान कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए बजट आवंटन में निरंतर वृद्धि की गई है, और इसके साथ ही इन क्षेत्रों में तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल निरंतर जारी है।
आवश्यक बढ़ावा
पहला, पिछले कई वर्षों से खाद्यान्न खरीद के जरिए किसानों को दिया जा रहा मूल्य समर्थन कृषि उपज का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने में सबसे अहम बन गया है। वित्त वर्ष 2025 के बजट में समग्र योजना ‘पीएम आशा (प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान)’ के तहत आवंटन 2.2 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 6.4 हजार करोड़ रुपये हो गया है। यह किसानों को पर्याप्त मूल्य समर्थन प्रदान करने, खाद्यान्न की बर्बादी को कम करने, और व्यापारियों द्वारा बाजार पर डाले जाने वाले अनुचित प्रभाव को सीमित करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। इसके अलावा, केंद्रीय क्षेत्र की प्रमुख योजनाओं जैसे कि फसल बीमा, ब्याज सब्सिडी, और आरकेवीवाई में एआईडीएफ (कृषि अवसंरचना विकास निधि) के तहत व्यापक प्रावधानों के परिव्यय में 10-15 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
दूसरा, कृषि संबंधी श्रम बल में 30 प्रतिशत महिलाएं हैं और आर्थिक रूप से सक्रिय 80 प्रतिशत से भी अधिक महिलाएं कृषि क्षेत्र में लगी हुई हैं, हालांकि वे समकक्ष पुरुष की तुलना में 20-30 प्रतिशत कम कमाती हैं और केवल 6 प्रतिशत महिलाओं की ही पहुंच संस्थागत ऋण तक है। उनकी आय में विविधता लाने और पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वित्त वर्ष 2025 के बजट में ‘नमो ड्रोन दीदी’ के तहत 15,000 ड्रोन उपलब्ध कराने के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जिससे ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी निश्चित रूप से बढ़ेगी और उनकी आर्थिक हैसियत बढ़ जाएगी।
तीसरा, कृषि अनुसंधान की व्यापक समीक्षा, जिसका उल्लेख वित्त वर्ष 2025 के बजट में किया गया है, एक अत्यंत जरूरी प्रावधान है। वर्तमान में शीर्ष निकाय आईसीएआर एवं उसके संस्थान, और इसके साथ ही राज्य कृषि विश्वविद्यालय (एसएयू) कृषि अनुसंधान पर हावी हैं। हालांकि, शोध की राह में मौजूद वास्तविक समस्याओं का निराकरण करने और इनका व्यावहारिक समाधान खोजने की सीमित सामूहिक गुंजाइश के कारण इस प्रभुत्व पर अक्सर सवाल उठाया जाता है। एक दशक पहले विश्व बैंक ने कहा था, ‘अनुसंधान और विस्तार या इन सेवाओं और निजी क्षेत्र के बीच बेहद कम जुड़ाव है।’ अत: सरकारी संगठनों के साथ-साथ चुनौती-आधारित इनाम प्रणाली (सीबीआरएस) के माध्यम से निजी क्षेत्र को शामिल करने से कृषि क्षेत्र में होने वाले अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) में निजी निवेश को काफी बढ़ावा मिल सकता है। एक प्रमुख खाद्य उत्पादक देश होने के बावजूद भारत कृषि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में कृषि संबंधी अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने के मामले में चौथे स्थान पर है, अत: वित्त वर्ष 2025 के बजट में डीएआरई (कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग) के लिए प्रावधान बहुत अधिक होने चाहिए थे। किसानों के सामने मौजूद तरह-तरह की दैनिक चुनौतियों के व्यावहारिक समाधानों को प्रभावकारी ढंग से व्यवस्थित करने, इन पर करीबी नजर रखने और उनका प्रचार-प्रसार करने के लिए जीएसटी परिषद की तर्ज पर एक स्वतंत्र केंद्रीय संगठन या निकाय (कृषि विकास परिषद) अत्यंत आवश्यक है।
चौथा, कृषि में उत्पादकता बढ़ाने हेतु संसाधनों के उपयोग संबंधी दक्षता को बेहतर करने पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि 45 प्रतिशत खेती योग्य भूमि लगभग 84 प्रतिशत पानी का उपयोग करती है। सबसे अधिक पानी की खपत वाली तीन फसलें- गन्ना, चावल और गेहूं- 80 प्रतिशत से अधिक पानी की खपत करती हैं। विशेष रूप से, पिछले दशक में भारत की उत्पादकता चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राजील की तुलना में तेजी से बढ़ी है। उत्पादकता संबंधी लाभ के कारण उत्पन्न अधिशेष को संभालने हेतु बुनियादी ढांचे को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना भी महत्वपूर्ण है। जलवायु संबंधी नाजुकता और मौसम की चरम घटनाओं के संदर्भ में, फसल की उपज में वृद्धि को बनाए रखते हुए खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु जलवायु प्रतिरोधी फसल की किस्मों (सीआरसीवी) को विकसित करना और उन्हें अपनाना आवश्यक है। केवीके के ढांचे के भीतर जलवायु प्रतिरोधी बसावट [क्लाइमेट रेजिलिएंट क्लस्टर (सीआरसी)] संबंधी दृष्टिकोण, सीआरसीवी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिहाज से महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, फसल उत्पादकता में सतत वृद्धि महत्वपूर्ण है क्योंकि 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से 11 सीधे कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के प्रदर्शन से जुड़े हैं।
पांचवां, बजट में प्रस्तावित बायो-इनपुट रिसोर्स सेंटर (बीआईआरसी) की स्थापना से कृषि में जैविक सामग्रियों के उपयोग को काफी बढ़ावा मिल सकता है, जिससे इनपुट सब्सिडी पर निर्भरता कम हो जाएगी। धरती माता के जीर्णोद्धार, उससे संबंधित जागरूकता के सृजन, पोषण और उन्नति के हेतु प्रधानमंत्री कार्यक्रम (पीएम-प्रणाम) का उद्देश्य राज्यों को रासायनिक सामग्रियों के उपयोग में कटौती करने के लिए प्रोत्साहित करना है। हालांकि, कृषि के स्तर पर परिवर्तन लाने और बीआईआरसी-प्रदत्त सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहित करने हेतु, एफपीओ और सहकारी समितियों द्वारा समर्थित पीएम-प्रणाम के भीतर एक विशिष्ट प्रोत्साहन तंत्र पर विचार किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, बीआईआरसी के दायरे में पशुधन चारा को शामिल करने की भी पर्याप्त संभावना है।
छठा, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 2023-24 के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति के एक तिहाई हिस्से के लिए सब्जियां जिम्मेदार रहीं, जिनकी कीमतें 29.3 प्रतिशत बढीं। सब्जियों की कीमतों में हालिया बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए सब्जी आपूर्ति श्रृंखला को बढ़ावा देना और प्रमुख उत्पादन एवं उपभोग केंद्रों की पहचान करना महत्वपूर्ण है। वित्तीय वर्ष 2025 के बजट में उल्लिखित इस दृष्टिकोण से उपभोक्ताओं की खर्च योग्य आय में वृद्धि होगी और उपभोक्ता के पैसों में उत्पादकों की हिस्सेदारी बढ़ेगी। कृषि उपज मूल्य श्रृंखला में लगे स्टार्टअप और ग्रामीण उद्यमों को वित्तपोषित करने के उद्देश्य से वित्तीय वर्ष 2025 के बजट में विशेष मिश्रित पूंजीगत समर्थन संबंधी उपाय के रूप में 62.5 करोड़ रुपये की पेशकश निश्चित तौर पर एक महत्वपूर्ण कदम है।
छूटी हुई कड़ियां
पहली कड़ी- भारत के कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में हो रहे महत्वपूर्ण परिवर्तन को देखते हुए, छोटे और सीमांत किसानों की आय बढ़ाने से जुड़े उपायों को लागू करना आवश्यक है। यह स्थापित तथ्य है कि पारंपरिक फसलों के बजाय उच्च मूल्य वाले फलों, सब्जियों और संबद्ध उद्यमों के साथ विविधता लाने से उनकी आय बढ़ सकती है। इस तरह के उपायों को वित्त वर्ष 24 के बजट में शामिल किया जाना चाहिए था, क्योंकि वे निकट भविष्य में ही मांग में फिर से वृद्धि कर सकते हैं और आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।
दूसरी कड़ी- फसल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा समर्थन उपायों ने लगातार संसाधनों पर दबाव डाला है और किसानों के लिए जलवायु संबंधी समस्याओं में वृद्धि की है। इसलिए, कृषि-जलवायु क्षेत्रों (एईजेड) और क्षेत्रीय फसल योजना की अवधारणा पर फिर से विचार करना महत्वपूर्ण है। यह दृष्टिकोण विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन प्रारूप एवं तौर-तरीकों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित और समन्वित कर सकता है।
तीसरी कड़ी- कृषि उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए बाजार सुधार आवश्यक हैं। 15वें वित्त आयोग ने राज्यों में कृषि विपणन प्रणाली के आधुनिकीकरण के क्रम में आवश्यक कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहनों की सिफारिश की है। इसलिए, विपणन प्रणाली को आधुनिक बनाने के राज्यों के प्रयासों के आधार पर उनका आकलन करने के लिए संकेतक और निगरानी व्यवस्था विकसित करने का प्रस्ताव दिया गया है, जिसे कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (आईएसएएम) के कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिए।
वित्त वर्ष 25 के बजट प्रावधान और प्रस्तावित पहल कृषि दक्षता एवं सहनीयता में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण बदलावों को दर्शाते हैं, लेकिन नवाचारों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया है, जो अनुसंधान और विकास व्यय से प्रतिबिंबित होता है। छोटे और सीमांत किसानों पर जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट प्रभाव की पहचान करते हुए, बजट से इन तत्काल जरूरतों को पूरा करने की उम्मीद थी। इन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपने कृषि परिवर्तन को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ा सकता है और इस क्षेत्र में दीर्घकालिक विकास और स्थायित्व को सुनिश्चित कर सकता है।
(डॉ. नवीन पी सिंह, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि लागत और मूल्य आयोग, (सीएसीपी) के सदस्य अधिकारी हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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