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Raipur chhattisgarh VISHESH

रिपोर्ट डॉ. मनीषा वर्मा : सबसे बड़ी जानलेवा बीमारियों में से ए, क्षयरोग (टीबी) एक संक्रामक बीमारी है जो दुनिया के हर हिस्से में पाई जाती है। यह वैश्विक चिंता का एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बना हुआ है। भारत इस बीमारी का सर्वाधिक भार वहन करने वाले देशों में से एक है। केंद्र और राज्य सरकारें सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 2030 के तहत वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले ही 2025 तक इसे समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आइए, हम इस रोग के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से विचार करें और इस दिशा में भारत की पहल को समझें।

टीबी का वैश्विक-भार
टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (M.tb) के कारण होने वाला एक संक्रामक वायुजनित रोग है। डब्ल्यूएचओ (WHO) का अनुमान है कि लगभग 1.8 बिलियन लोग, जो कि वैश्विक आबादी का लगभग 1/4 हिस्सा है, टीबी से संक्रमित हैं। हर साल लगभग 13 लाख बच्चे टीबी से बीमार पड़ते हैं। यह दुनिया भर में मौतों के लिए उत्तरदायी प्रमुख संक्रामक कारणों में से एक है। पिछले साल, टीबी को कोविड-19 के बाद दुनिया में किसी एक संक्रामक एजेंट से होने वाली मौतों के दूसरे प्रमुख कारण के रूप में दर्ज किया गया। यह एचआईवी/एड्स से लगभग दोगुनी मौतों का कारण रहा। 2022 में, 1.06 करोड़ लोग टीबी से संक्रमित हुए और 14 लाख लोगों की मौत हुई। टीबी के कारण प्रतिदिन 3500 मौतें होती हैं।

क्षयरोग विभिन्न सामाजिक, आर्थिक तथा स्वास्थ्य-संबंधी जोखिम कारकों द्वारा गहनता से प्रभावित होता है। ये कारक हैं – कुपोषण, मधुमेह, एचआईवी संक्रमण, मद्य-सेवन से होने वाले विकार और धूम्रपान। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 2020 में वैश्विक स्तर पर, टीबी के अनुमानित 19 लाख मामले कुपोषण के कारण, 7.4 लाख एचआईवी संक्रमण के कारण, 7.4 लाख मद्य-सेवन से उत्पन्न विकारों के कारण, 7.3 लाख धूम्रपान के कारण और 3.7 लाख मधुमेह के कारण थे। हालांकि, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर इसमें भिन्नताएं हैं। उदाहरण के लिए, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली शहरी आबादी में इसका विस्तार अधिक देखा गया है।
विश्व के, 87% टीबी मामलों का भार उच्च संक्रमण वाले 30 देशों पर है। इनमें से, वैश्विक कुल बोझ का दो-तिहाई हिस्सा आठ देशों में पाया गया।
कुल वैश्विक मामलों में भारत की 27% की बड़ी हिस्सेदारी है, जिसके बाद इंडोनेशिया (10%), चीन (7.1%), फिलीपींस (7.0%), पाकिस्तान (5.7%), नाइजीरिया (4.5%), बांग्लादेश (3.6%) और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (3.0%) का स्थान आता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत की प्रगति की सराहना
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2023 ने भारत को क्षयरोग-मुक्त देश बनाने की दिशा में इसकी उल्लेखनीय गतिविधियों और हस्तक्षेपों के लिए श्रेय दिया है। WHO ने 2015 से (2022 तक) क्षयरोग की घटनाओं में 16 प्रतिशत और इसके कारण होने वाली मृत्यु दर में 18 प्रतिशत की कमी लाने में भारत की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्रगति की सराहना की है।
भारत को अपनी तीव्र केस-डिटेक्शन रणनीतियों के लिए सराहना मिली है, जिनके कारण 2022 में अब तक के सबसे अधिक मामले अधिसूचित हुए ;और 24.22 लाख से अधिक टीबी मामलों की ये अधिसूचनाएं पूर्व-कोविड स्तरों को पार कर गईं। 2023 में 25.5 लाख टीबी मामलों की अधिसूचना के साथ एक रिकॉर्ड अधिसूचना दर्ज की गई। इनमें से 17.1 लाख टीबी मामले सार्वजनिक क्षेत्र में अधिसूचित किए गए, जबकि 8.4 लाख निजी क्षेत्र द्वारा अधिसूचित किए गए। कुल अधिसूचनाओं के 33% पर, यह अब तक का उच्चतम योगदान था। विभिन्न हस्तक्षेपों के माध्यम से निजी क्षेत्र के साथ केंद्रित और लक्षित जुड़ाव के परिणामस्वरूप निजी क्षेत्र की अधिसूचना में पिछले नौ वर्षों में आठ गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त, उपचार कवरेज अनुमानित टीबी मामलों के 80 प्रतिशत तक बढ़ गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 19 प्रतिशत की वृद्धि है।
एक उत्साहजनक अवलोकन में, डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट यह भी स्वीकार करती है कि भारत में गिरावट की गति वैश्विक टीबी घटनाओं में कमी की गति से लगभग दोगुनी है, जो कि 8.7 प्रतिशत है। इसके अलावा, डब्ल्यूएचओ ने टीबी मृत्यु दर में अधोमुखी संशोधन है (2021 में 4.94 लाख से 2022 में 3.31 लाख तक)। 34 प्रतिशत से अधिक की कमी नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) से एकत्र किए गए 2014-2019 के मृत्यु-कारण आंकड़ों पर आधारित है।

भारत को टीबी-मुक्त बनाने के लिए प्रमुख पहल
यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि यद्यपि क्षयरोग बहुत संक्रामक है, परन्तु यदि इसका यथासमय पता चल जाए और पूरा उपचार हो जाए तो यह पूरी तरह से रोकथाम-योग्य और उपचार-योग्य रोग है।
वैश्विक टीबी की घटनाओं के उच्चतम बोझ से दबी भारत सरकार ने टीबी की समस्या से मिशन मोड में निपटने का फैसला किया है। संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टीबी महामारी को समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है। टीबी एसडीजी लक्ष्य 3.3 का हिस्सा है, जिसमें कहा गया है: ‘एड्स, क्षयरोग, मलेरिया और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की महामारियों को समाप्त करना और हेपेटाइटिस, जल-जनित रोगों और अन्य संक्रामक रोगों से 2030 तक निपटना’। परंतु, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में घोषणा की कि भारत वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले यानी 2025 तक टीबी को देश से ख़त्म कर देगा। इसने नीति-निर्माताओं और टीबी-मुक्त भारत की दिशा में काम करने वाली एजेंसियों को केंद्रित ऊर्जा के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया है। मार्च 2023 में वाराणसी में “स्टॉप टीबी पार्टनरशिप” मीटिंग में, टीबी-मुक्त समाज सुनिश्चित करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए, पीएम ने कहा कि “भारत ने 2014 के बाद टीबी से निपटने के लिए जिस प्रतिबद्धता और दृढ़ संकल्प के साथ खुद को समर्पित किया है, वह अभूतपूर्व है।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह “टीबी के खिलाफ़ वैश्विक-युद्ध का नया मॉडल है”। भारत के प्रयासों को वैश्विक प्रशंसा मिली है। “स्टॉप टीबी पार्टनरशिप” की कार्यकारी निदेशक डॉ. लुसिका दितिउ ने टीबी से निपटने में भारत के प्रयासों एवं “टीबी-मुक्त भारत” पहल की सराहना की। उन्होंने विश्वास जताया कि भारत 2025 तक टीबी को ख़त्म कर देगा और इससे वैश्विक टीबी के बोझ में भारी कमी आएगी। भारत को 2025 तक टीबी-मुक्त बनने के अपने लक्ष्य को पूरा करने में दो साल से भी कम समय शेष है, इसलिए आगे बढ़ने का दृष्टिकोण रोग की रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करना और टीबी के निदान एवं उपचार में सेवाओं के कवरेज को बढ़ाना है। यह देखना उत्साहजनक है कि सरकारों, सहायता एजेंसियों और समुदायों के निरंतर प्रयासों से भारत में टीबी के ‘मिसिंग मामलों’ (missing cases) की संख्या 2015 में 1 मिलियन से घटकर 2023 में 0.26 मिलियन रह गई है।
2025 तक टीबी से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) को लागू कर रहा है:

  1. टीबी रोगियों का शीघ्र निदान, गुणवत्तापूर्ण दवाओं और उपचार पद्धतियों के साथ शीघ्र उपचार।
  2. निजी क्षेत्र में देखभाल चाहने वाले मरीजों से जुड़ना।
  3. रोकथाम रणनीतियों में उच्च जोखिम/ संवेदनशील आबादी में संपर्क का पता लगाना शामिल है।
  4. वायुजनित संक्रमण-नियंत्रण.
  5. सामाजिक निर्धारकों को संबोधित करने के लिए बहु-क्षेत्रीय प्रतिक्रिया।

प्रधानमंत्री टीबी-मुक्त भारत अभियान
टीबी के खिलाफ़ लड़ाई को मिशन मोड में लाने के लिए, “प्रधानमंत्री टीबी-मुक्त भारत अभियान” सितंबर, 2022 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य 2025 तक टीबी के संबंध में एसडीजी लक्ष्य को पूरा करने के लिए गतिविधियों और हस्तक्षेपों को डिज़ाइन करना था। इसके लिए सामुदायिक स्तर पर भागीदारी की आवश्यकता थी, जहां विभिन्न एजेंसियां, समुदाय और सरकारें एक साथ मिलकर काम कर रही हैं। इस पहल ने सभी पृष्ठभूमियों के लोगों को एक ‘जन आंदोलन’ के रूप में एक साथ लाकर टीबी-उन्मूलन की दिशा में प्रगति को आगे बढ़ाया। इसे कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) गतिविधियों का भी लाभ प्राप्त हुआ।

एक नई पहल, “नि-क्षय मित्र” की शुरुआत की गई, जहाँ समाज के विभिन्न क्षेत्रों के स्वयंसेवक टीबी रोगियों को उनके ठीक होने की यात्रा में मदद करने के लिए “मित्र” बनेंगे। “नि-क्षय मित्र” वे व्यक्ति, गैर-सरकारी संगठन, सहकारी समितियां, धार्मिक- संगठन, निजी क्षेत्र, राजनीतिक दल और अन्य हो सकते हैं जो टीबी रोगियों को पोषण-सहायता, पोषण-संबंधी पूरक, अतिरिक्त जाँच और व्यावसायिक सहायता के रूप में कम से कम छह महीने या अधिकतम तीन साल तक की अवधि के लिए सहायता करने के लिए सहमति देते हैं। टीबी रोगियों को अक्सर समुदायों में कलंक (stigma) का सामना करना पड़ता है। टीबी-उन्मूलन अभियान में समुदाय की भागीदारी का उद्देश्य रोग से संबंधित कलंक को समाप्त करना है। सामुदायिक भागीदारी से रोग के बारे में अधिक जागरूकता और इसे रोकने और इसे बेहतर तरीके से प्रबंधित करने के तरीकों का भी पता चलेगा। इस रोग और इसके लंबे समय तक चलने वाले उपचार के कारण कई लोगों की नौकरियाँ गईं और उन्हें आर्थिक कठिनाइयाँ हुईं। नि-क्षय मित्र टीबी रोगियों को व्यावसायिक सहायता प्रदान करने का भी संकल्प लेते हैं।

20 अप्रैल, 2024 तक 1.55 लाख से अधिक नि-क्षय मित्र पंजीकरण करवा चुके हैं। देश में उपचाराधीन 13.45 लाख टीबी रोगियों में से 8.66 लाख से अधिक ने सामुदायिक सहायता प्राप्त करने के लिए सहमति प्रदान की है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी को आगे आकर रूप में नि-क्षय मित्र के रुप में अपना पंजीकरण कराने के लिए प्रोत्साहित करने और स्थानीय समुदायों और रोगियों का समर्थन करने के लिए एक देशव्यापी अभियान शुरू किया है । प्रसिद्ध नि-क्षय मित्रों में 27 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के माननीय राज्यपाल/ उपराज्यपाल , केंद्रीय मंत्री, राज्यमंत्री, मुख्यमंत्री, कई राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के स्वास्थ्य मंत्री टीबी रोगियों को गोद लेने के लिए आगे आए हैं। कई विधायक और स्थानीय परिषद भी नि-क्षय मित्र बन गए हैं। कैबिनेट सचिवालय और केंद्रीय मंत्रालयों के कई अधिकारियों ने विभिन्न माध्यमों से टीबी रोगियों की सहायता करने के लिए उन्हें गोद लिया है।

एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान
अन्य कई उपायों ने भारत में टीबी-विरोधी अभियान को मज़बूती से बढ़ावा दिया है। अध्ययनों (हो जे. एवं अन्य., 2016) से पता चला है कि ‘पैसिव केस फाइंडिंग’ (पीसीएफ) के माध्यम से टीबी के मामलों का पता लगाने का परिणाम हो सकता है कि टीबी रोगियों का पता लगने में कमी रह जाए। यह प्रवृत्ति कम और मध्यम आय वाले देशों में अधिक है, जहां टीबी- भार अधिक है। यह मुख्य रूप से स्वास्थ्य-सुविधाओं तक पहुँचने में भौगोलिक और/या सामाजिक-आर्थिक बाधाओं के कारण होता है, जिसके कारण अक्सर निदान में देरी होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा टीबी के मामलों का पता लगाने और समय पर उपचार के लिए ‘टीबी-उन्मूलन रणनीति’ (End TB Stretegy) के एक भाग के रूप में उच्च जोखिम वाले जनसंख्या उपसमूहों की ‘व्यवस्थित जाँच’ की वकालत की गई है।
भारत ने टीबी के ‘मिसिंग पेशेंट्स’ तक पहुंचने के लिए राष्ट्रीय क्षयरोग-उन्मूलन कार्यक्रम की रणनीतिक योजना के हिस्से के रूप में उच्च जोखिम वाले समूहों में राष्ट्रीय समुदाय-आधारित ‘एक्टिव केस फाइंडिंग’ अभियान शुरू किया। इस कार्यक्रम के तहत, इस संवेदनशील आबादी के बीच टीबी के मामलों की सक्रिय घर-घर जाकर जाँच की जाती है।
इसमें एचआईवी से पीड़ित लोग, मधुमेह रोगी, कुपोषित; आवासीय संस्थान जैसे- जेल, शरणालय, वृद्धाश्रम, अनाथालय; आदिवासी क्षेत्र तथा हाशिए पर रहने वाली आबादी शामिल हैं। इस गतिविधि के परिणामस्वरूप, इसकी शुरुआत से अब तक लगभग 3 लाख अतिरिक्त टीबी मामलों का निदान हुआ है।

विकसित भारत संकल्प-यात्रा के दौरान टीबी की जाँच
विकसित भारत संकल्प-यात्रा नवंबर 2023 के दौरान शुरू की गई थी। इस राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में जागरूकता बढ़ाने वाली आईईसी वैन द्वारा लिए गए मार्गों पर स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए गए, जहाँ ग्रामीण स्तर पर समुदायों के लिए उनके घरों के पास कई स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की गईं, जिनमें टीबी की जाँच भी शामिल थी।
इन स्वास्थ्य-शिविरों में 38 मिलियन से अधिक व्यक्तियों की टीबी के लिए जाँच की गई है और 1 मिलियन से अधिक लोगों को टीबी-परीक्षण के लिए रेफर किया गया है। इसके अतिरिक्त, गांव स्तर पर 1,00,000 से अधिक व्यक्तियों ने नि-क्षय मित्र बनने में रुचि दिखाई है।

टीबी अधिसूचनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि
विशेष एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान, ब्लॉक स्तर तक आणविक निदान (molecular diagnostics) में बढ़ोतरी के साथ मिलकर, आयुष्मान भारत आरोग्य मंदिरों (जिन्हें पहले स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र के रूप में जाना जाता था, जिनकी संख्या देश भर में 1.64 लाख से अधिक है) के माध्यम से विकेंद्रीकृत स्क्रीनिंग सेवाओं और निजी क्षेत्र की भागीदारी ने मिसिंग केसेज़’ में अन्तर को पाटने की प्रक्रिया को काफी बढ़ावा दिया है। ये केंद्र टीबी की जांच के लिए प्रथम संपर्क-बिंदु के रूप में काम करते हैं।
भारत ने 2022 में 24.2 लाख टीबी मामलों को अधिसूचित किया, जो 2019 के पूर्व-कोविड स्तर से काफ़ी अधिक था। 2023 में कुल 25.5 लाख टीबी रोगियों को अधिसूचित किया गया।

टीबी-मुक्त पंचायत अभियान
टीबी-मुक्त पंचायतों का उद्देश्य पंचायतों को टीबी से जुड़ी समस्याओं की सीमा और परिमाण से अवगत कराने, और उन्हें हल करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने के लिए सशक्त बनाना, पंचायतों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करना और उनके योगदान की सराहना करना है।

क्षमता-निर्माण के एक भाग के रूप में, राज्य और जिला स्तर के अधिकारियों को इस पहल की ओर उन्मुख करने के लिए कई क्षेत्रीय कार्यशालाएँ आयोजित की गई हैं। सभी राज्य और ज़िला स्तर के अधिकारियों को जागरूक (sensitized) किया गया है। वर्तमान में, सत्यापन किया जा रहा है, तत्पश्चात परिणाम घोषित किए जाएँगे। अभी तक इस अभियान ने टीबी निवारक उपचार दवा (TB preventive treatment drug ) के 5 मिलियन से अधिक कोर्स सुनिश्चित करने में मदद की है। साथ ही, ग्रामीणों को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में टीबी की जाँच कराने के लिए भी प्रोत्साहित किया है।

निजी-क्षेत्र की अधिसूचना में उल्लेखनीय उछाल

रोगी प्रदाता सहायता एजेंसी (Patient Provider Support Agency)(PPSA), टीबी मामलों की अनिवार्य अधिसूचना के लिए राजपत्र-अधिसूचना, मामलों की अधिसूचना के लिए प्रोत्साहन और भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए), भारतीय बाल रोग संघ (आईएपी), फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएसआई), इत्यादि जैसे पेशेवर निकायों के साथ सहयोग जैसे हस्तक्षेपों के माध्यम से निजी क्षेत्र के साथ केंद्रित और लक्षित जुड़ाव के साथ, पिछले नौ वर्षों में निजी क्षेत्र की अधिसूचना में 8 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। 2022 में, 7.33 लाख टीबी मामले अधिसूचित किए गए, जबकि 2023 में, 8.42 लाख रोगियों को निजी क्षेत्र से अधिसूचित किया गया, जिसने कुल अधिसूचनाओं का 33% (अब तक का उच्चतम) योगदान दिया (फरवरी 2024 तक)। कार्यक्रम सम्बन्धी सहयोगात्मक प्रयासों के परिणामस्वरूप निजी क्षेत्र से रिपोर्ट किए गए मामलों में 8 गुना वृद्धि हुई। ये अभिनव (innovative) निजी क्षेत्र मॉडल वैश्विक स्तर पर उत्तम प्रचलन रहे हैं।

टीबी उपचार की सफलता दर में वृद्धि

पिछले नौ वर्षों में, एक तिहाई अधिसूचनाएँ निजी क्षेत्र से आने के बावजूद, कार्यक्रम 80% से अधिक की उपचार सफलता दर बनाए रखने में सक्षम रहा है। 2021 में, सफलता दर 84% तक पहुँच गई और 2022 में यह अंशत: बढ़कर 85.5% हो गई। 2023 में, सफलता दर बढ़कर 86.9% हो गई।

नई टीबी-रोधी दवाओं के आने से पड़ा महत्त्वपूर्ण प्रभाव

सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अल्पकालीन, सुरक्षित ओरल बेडाक्विलिन युक्त डीआर-टीबी उपचार शुरू किए गए हैं। ये दवाएँ मल्टी-ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी रोगियों को फ्लोरोक्विनोलोन के प्रतिरोध के साथ या बिना प्रतिरोध के, कम समय के ऑरल एमडीआर/आरआर (मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट / रिफैम्पिसिन-रेसिस्टेंट) -टीबी उपचार या लंबे समय के ऑरल एम (मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट)/एक्सडीआर (व्यापक रूप से दवा-प्रतिरोधी)-टीबी उपचार के हिस्से के रूप में दी जाती हैं। 2022 में, कुल लगभग 31,000 रोगियों को दीर्घकालीन सभी-ऑरल एम/एक्सडीआर-टीबी उपचार और 27,431 रोगियों को अल्पकालीन एमडीआर/आरआर-टीबी उपचार (मौखिक/इंजेक्शन आधारित) पर शुरू किया गया।

2023 में, 63,939 से ज़्यादा मरीज़ों में एमडीआर/आरआर का निदान किया गया और उनमें से 58,527 से ज़्यादा लोगों ने इलाज शुरू किया। इनमें से, लगभग 20,567 मरीज़ों को अल्पकालीन ऑरल एमडीआर/आरआर-टीबी उपचार (9-11 महीने) दिया गया और करीब 29,990 मरीज़ों को दीर्घकालीन एम/एक्सडीआर-टीबी उपचार (18-20 महीने) दिया गया।

निक्षय पोषण योजना के माध्यम से पोषण सहायता
टीबी के लिए कुपोषण एक महत्त्वपूर्ण जोखिम कारक के रूप में पाया जाता है जिसका टीबी रोगियों के स्वास्थ्यलाभ पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सक्रिय टीबी विकसित होने का जोखिम कुपोषित लोगों में स्वस्थ लोगों की तुलना में अधिक होता है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट (2017) के अनुसार, सक्रिय टीबी से पीड़ित लोग जो कुपोषण से पीड़ित हैं, आमतौर पर उनमें मृत्यु दर में दो से चार गुना वृद्धि होती है। साथ ही, दवा-प्रेरित (drug-induced) हेपेटोटॉक्सिसिटी का जोखिम भी पाँच गुना है।

इस प्रबल सह-संबंध को देखते हुए, सरकार ने अप्रैल 2018 में ‘निक्षय पोषण योजना’ (एनपीवाई) की शुरुआत की, जिसके तहत टीबी रोगियों को उपचार की पूरी अवधि के दौरान पोषण-समर्थन के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के रूप में 500 रुपये प्रति माह प्रदान किए जाएँगे। अब तक, 1 करोड़ से अधिक टीबी रोगियों को इसका लाभ हुआ है। कुल मिलाकर, मार्च-2024 तक 2859.96 करोड़ रुपये से अधिक का वितरण किया जा चुका है।

बुनियादी ढाँचे का विस्तार

सक्रिय टीबी मामलों का पता लगाने में नैदानिक आधारभूत ढाँचे (डायग्नोस्टिक इन्फ्रास्ट्रक्चर) ने अहम भूमिका निभाई है। ठोस प्रयासों के माध्यम से, टीबी प्रयोगशाला सेवाओं के बुनियादी ढाँचे का उल्लेखनीय विस्तार हुआ है। पिछले 9 वर्षों में डिजिग्नेटिड माइक्रोस्कोपी केंद्रों (डीएमसी) में 80% की वृद्धि हुई है (2014 में 13583 से 2023 में 24449 तक)। साथ ही, अब तक 6196 नई आणविक नैदानिक प्रयोगशालाएँ (molecular diagnostic laboratories) स्थापित की गई हैं। दवा-प्रतिरोधी टीबी उपचार केंद्रों की संख्या 2014 में 127 से बढ़कर 2022 में 792 हो गई है।

उपराष्ट्रीय रोग-मुक्त प्रमाणीकरण

राज्य/संघ राज्य क्षेत्र/जिला स्तर पर टीबी महामारी की प्रवृत्तियों की निगरानी करने के लिए, स्वास्थ्य मंत्रालय ने सामुदायिक-स्तर के सर्वेक्षण-पद्धति (इनवर्स सैंपलिंग पद्धति) के माध्यम से रोग-भार का अनुमान लगाने और निजी क्षेत्र में दवा-बिक्री के आंकड़ों पर नज़र रखने तथा कार्यक्रम के लिए कम रिपोर्टिंग के स्तर को मापने की एक नई पहल शुरू की है।

इस पद्धति के माध्यम से, टीबी रोग के राज्य/संघ राज्य क्षेत्र/जिला स्तर के अनुमान निकाले जाते हैं और उन्हें 2015 की आधार-रेखा के आधार पर मापा जाता है।
● वर्ष 2020 में, केरल, केंद्र शासित प्रदेश-लक्षद्वीप एवं पुडुचेरी तथा 35 ज़िलों ने टीबी की घटनाओं में कमी के विभिन्न स्तरों को सफलतापूर्वक हासिल किया है। केंद्र-शासित प्रदेश लक्षद्वीप एवं जम्मू-कश्मीर के बडगाम ज़िले को क्रमश: टीबी की घटनाओं में 80% से अधिक कमी हासिल करने वाला पहला केंद्र-शासित प्रदेश और देश का पहला ज़िला घोषित किया गया। (एसडीजी लक्ष्य)।
● 2021 में, 3 राज्यों (केरल, डी.एन.एच.डी.डी. और पुडुचेरी) को रजत (>40% कमी) और 5 राज्यों (गुजरात, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, त्रिपुरा, लद्दाख) को कांस्य (>20% कमी) प्राप्त हुआ जबकि 8 जिलों को स्वर्ण (>60% कमी), 27 ज़िलों को रजत और 56 ज़िलों को कांस्य प्राप्त हुआ।
● 2022 में कर्नाटक को रजत (>40% कमी) एवं जम्मू और कश्मीर को कांस्य (>20% कमी) प्राप्त हुआ। तीन ज़िलों को टीबी-मुक्त (>80% कमी) घोषित किया गया, 17 ज़िलों को स्वर्ण (>60% कमी), 35 ज़िलों को रजत और 48 ज़िलों को कांस्य प्राप्त हुआ।

जी-20 भारत की अध्यक्षता के दौरान उच्च-स्तरीय फोकस

इन कदमों के अलावा, 2023 में जी-20 इंडिया प्रेसीडेंसी के तहत, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वैश्विक-महत्त्व की चुनिंदा चिंताओं की तत्परतापूर्वक वकालत की है और समाधान किया है, जिसमें डिजिटल समाधान का उपयोग करके स्वास्थ्य-सेवाओं की प्रभावशीलता और पहुंच में सुधार करना; औषधीय-विकास और विनिर्माण-क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सहयोग को मज़बूत करना शामिल है। नवंबर 2023 में गुजरात के गांधीनगर में स्वास्थ्य कार्य-समूहों (Health Working Groups ) और मंत्रिस्तरीय बैठक में विचार-विमर्श के दौरान “वन हेल्थ” दृष्टिकोण और एंटी-माइक्रोबियल रेज़िस्टेंस (एएमआर) पर विशेष ध्यान दिया गया। इन सभी का भारत और दुनिया की टीबी के खिलाफ़ लड़ाई के साथ गहरा संबंध रहा है।

निष्कर्ष

टीबी से निपटने के लिए समयसीमा और जवाबदेही संरचनाओं के साथ एक व्यापक-आधारित कार्य-योजना की आवश्यकता है, जिसकी समुदायों और विभिन्न हितधारकों और भागीदारों को शामिल करते हुए परिश्रमपूर्वक निगरानी की जाए। डब्ल्यूएचओ ने टीबी के लिए एक बहुक्षेत्रीय जवाबदेही ढांचा (एमएएफ-टीबी) तैयार किया है जिसे 2019 में देशों के साथ साझा किया गया था। इसे राष्ट्रीय कार्य-योजनाओं द्वारा अनुपूरित गया है। अब देशों को इन कार्य-योजनाओं को वैश्विक लक्ष्यों और समयसीमाओं के अनुरूप लागू करना है ताकि दुनिया को टीबी के अभिशाप से मुक्त किया जा सके।


संदर्भ
हो जे., फॉक्स जी.जे., पैसिव केस फाइंडिंग फॉर ट्यूबरक्यूलोसिस इज़ नॉट इनफ. इंट. ज. माइकोबैक्टीरियोल. 2016;5: 374–378.

डब्ल्यूएचओ, न्यूट्रीशनल केयर एंड सपोर्ट फॉर पेशेंट्स विद ट्यूबरक्यूलोसिस. 2017; 107.

लेखक
डॉ. मनीषा वर्मा, भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में अतिरिक्त महानिदेशक (मीडिया 7 संचार ) हैं।
ये उनके निजी विचार हैं।

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